हम जो बोते हैं वो काटते हैं .
हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं .
हवा बह रही है ;
वो जहाज जिनके पाल खुले हैं ,
इससे टकराते हैं ,
और अपनी दिशा में आगे बढ़ते हैं ,
पर जिनके पाल बंधे हैं हवा को नहीं पकड़ पाते .
क्या यह हवा की गलती है ?…..
हम खुद अपना भाग्य बनाते हैं .
शारीरिक , बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी कमजोर बनता है - ,
उसे ज़हर की तरह त्याग दो .
एक समय में एक काम करो ,
और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा
उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ .
कुछ मत पूछो , बदले में कुछ मत मांगो .
जो देना है वो दो ;
वो तुम तक वापस आएगा ,
पर उसके बारे में अभी मत सोचो .
जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे .
यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो ,
तुम कमजोर हो जाओगे ;
अगर खुद को ताकतवर सोचते हो ,
तुम ताकतवर हो जाओगे .
मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं .
जब वो केन्द्रित होती हैं ; चमक उठती हैं .
आकांक्षा , अज्ञानता , और असमानता –
यह बंधन की त्रिमूर्तियां
हैं .
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