यदि स्वयं में विश्वास करना
और अधिक विस्तार से पढाया और अभ्यास कराया गया होता ,
तो मुझे यकीन है कि बुराइयों
और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता .
हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम
आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें ;
और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के
जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें .
एक विचार लो . उस विचार को अपना जीवन बना लो –
उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो , उस विचार को जियो .
अपने मस्तिष्क , मांसपेशियों ,
नसों ,
शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो ,
और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो .
यही सफल होने का तरीका है.
जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि
भगवान हर एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान हैं ,
जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया
और उसके भीतर भगवान को देखने लगा –
उसी क्षण मैं बन्धनों से मुक्त हूँ ,
हर वो चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी ,
और मैं स्वतंत्र हूँ .
वेदान्त कोई पाप नहीं जानता ,
वो केवल त्रुटी जानता है .
और वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटी यह कहना है
कि तुम कमजोर हो , तुम पापी हो ,
एक तुच्छ प्राणी हो ,
और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है
और तुम ये वो नहीं कर सकते .
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