जो व्यक्ति भी विकास के लिए खड़ा है
उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी ,
उसमे अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी.
मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा ,
आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ.
पर मैं ज़रुरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ, और वही सच्चा बलिदान है.
अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है
जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है .
लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं ?
तभी हमें आत्म -बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है
ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें .
किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है
और नया आन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है
और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं
वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान ,
वाशिंगटन और गैरीबाल्डी , लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है।
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